Wednesday, July 14, 2010

दिल्ली हाट के स्टाल का किराया तीन सौ साठ रुपया प्रतिदिन है


भारत में हाटों की परंपरा नई नहीं है। देश के विभिन्न भागों में हाट लगते रहे हैं। दिल्ली हाट दस्तकारों को भी एक प्लेटफार्म मुहैया करा रहा है दिल्ली की शुरूआत 28 मार्च 1994 को हुई थी।दक्षिणी दिल्ली में किदवई नगर में आईएनए मार्केट के सामने स्थित ‘दिल्ली हाट’ कुल छः एकड़ में फैला है।दिल्ली हाट के स्टाल का किराया तीन सौ साठ रुपया प्रतिदिन है। देश के सभी हिस्सों के दस्तकारों को यहां आने का मौका मिल सके। यहां देश के हस्तशिल्पियों की शिल्पकारी को देखना एक सुखद अनुभूति है। इसके अलावा हैंडलूम यानी हथकरघा के कपड़े भी यहां उपलब्ध हैं।बनारसी सिल्क साड़ी, मधुबनी पेंटिंग जैसी कई क्षेत्रीय चीजें यहां उपलब्ध हैं। पश्चिम बंगाल की कांथा साड़ियां राजस्थान के पारंपरिक पोशाक की खोज भी यहां आकर पूरी हो जाती है। कपड़ों के अलावा हाथ से बनी अन्य चीजें भी दिल्ली हाट में उपलब्ध हैं। यहां मिलने वाले स्वादिष्ट व्यंजन ‘दिल्ली हाट’ को खास बनाते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों के फूड स्टाल्स यहां लगे हैं। 1994 मे जब दिल्ली हाट की शुरूआत हुई थी तब देश के सभी पच्चीस राज्यों को यहां फूड स्टाल मुहैया कराए गए थे ताकि यहां आने वाले लोग दूसरे प्रांतांे के व्यंजनों का भी स्वाद ले सकें। भौगोलिक रूप से विविधताओं का देश तो हिन्दुस्तान है ही यहां के खान-पान में भी काफी विविधता है। दिल्ली हाट के डिप्टी मैनेजर रहे आरके शर्मा कहते हैं कि इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश था कि बिचैलियों को हटाकर दस्तकारों को उनके उत्पाद का सीधा लाभ दिया जाए। कपड़ा मंत्रालय ने दस्तकारों की माली हालत सुधारने के लिहाज से लिया था। इसके अलावा यहां देश के विभिन्न राज्यों के खान-पान को भी एक स्थान पर मुहैया कराने की पहल की गई है।इसके पीछे यह सोच थी कि अपने प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के व्यंजनों से भी लोग परिचित हों। कहना न होगा कि ‘दिल्ली हाट’ की पहचान ही यहां मिलने वाले खांटी देशी उत्पादों और खाने वाले विविध व्यंजनों से बनी है। यहां आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम भी लोगों को आकर्षित करते रहे हैं। ‘दिल्ली हाट’ का बढ़ता आकर्षण ही है कि यहां देशी ग्राहकों के साथ-साथ विदेशी ग्राहकों की भी अच्छी-खासी संख्या खरीदारी में व्यस्त दिखती है।

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