Saturday, June 19, 2010

शिल्पियों का ऐसे कैसे होगा भला

हस्तशिल्प की परम्परा को कायम रखने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे है। योजनाओं का आलम यह है कि कुछ स्वत: ही दम तोड़ चुकी है, तो कुछ को सरकारी कारिंदे कारगर नहीं होने दे रहे। हस्त शिल्पियों की आर्थिक स्थिति का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। शिल्पियों को ही बैंक से क्रेडिट कार्ड जारी किया गया है, लेकिन इसका लाभ उठाने वाले चन्द ही है।

हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा मार्केट और सुविधाएं मुहैया कराए जाने के भरसक प्रयास किए जा रहे है। इसके बाद भी हस्त शिल्पी पिछड़े हुए है। इसका कारण श्रम अधिक और आय कम है। एक आइटम को बनाने में जहां हस्त शिल्पियों को कई दिन लग जाते है, वहीं मशीन से कई तैयार कर लिए जाते है। ऐसे में दरो में काफी अन्तर आ जाता है, जो प्रतिस्पर्धा के दौर में शिल्पियों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। शासन ने शिल्पियों को मेले में फ्री दुकानें और माल ढोने में आने वाले भाड़े के भार को कम करने के लिए आईडी कार्ड योजना लागू की है। , कार्ड जारी किए जा चुके है। इसमें से भी कुछ ही इसका लाभ उठा पा रहे है। शिल्पियों को क्रेडिट कार्ड जारी करने की स्थिति तो और भी खराब है। उद्योग विभाग ने क्रेडिट कार्ड बनाने के लिए 45 शिल्पियों की फाइलें विभिन्न बैंकों को भेजी थी। इसमें से कार्ड जारी हुए मात्र आठ शिल्पियों को। विभागीय सूत्र बताते है कि जनपद में पीतल, सेरेमिक, मैकरम, मिट्टी के आइटम, वस्त्रों पर कढ़ाई, हैण्डलूम टैक्सटाइल्स के अलावा बांस के सूपा, डलिया बनाने वालों की खासी जमात है। मेहनत के अनुसार मेहनताना न मिलने के कारण कई ने इससे मुंह मोड़ दूसरे धंधों की ओर रुख कर लिया है।www.hastshilpisamachar.com www.hastshilpisamachar.com

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