Sunday, December 5, 2010

कारीगर ख़ुशी से फुले ही नहीं समाते

हस्तशिल्प विभाग ने इस बार बहुत ही कम मेलों का आयोजन कर रहे हैं.जिससे कारीगरों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है| अगर मेले लगा भी रहे हैं तो यह भी कारीगरों की पहुँच से बहार हैं कई कारीगर तो अपनी कला को छोड़ परिवार का खर्चा चलाने के लिए या तो रिक्शा चला रहें हें या फिर मजदूरी कर घर चलाने को मजबूर हें|
कारीगरों ने बाताया कि मेले नहीं लग पाने के कारण कारीगर आज भूखे मरने कि कगार पर हैं| अगर कारीगर इतना धनी व पैसे वाला होता तो मेलों स्टाल लगाने कि क्या जरुरत होती | रोजी - रोटी का यही एकमात्र साधन है| जिससे अपनी आजीविका चलती हैं| जैसे किसान को बारिश का इंतज़ार रहता है उसी तरह शिल्पियों को जब भी कहीं मेले लगने कि सुचना मिलती है तो कारीगर ख़ुशी से फुले ही नहीं समाते हें हस्तशिल्प विभाग से कारीगरों कि मांग है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या मैं मेले लगाएं ताकि कारीगरों का ज्यादा से ज्यादा माल मेलों मैं बिक सके
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