Monday, January 31, 2011
Indian Artisans – A Dying Workforce
ise, the industry here is caught in the midst of a dilemma. The increasing number of orders is good news indeed, especially coming after a bad recessive year, when the buyers for handmade Indian crafts significantly dropped. But a serious dearth of skilled workers is threatening the industry’s growth prospects. The shortage of skilled artisans is not a sudden event as the numbers have steadily been dwindling over the past years. There are many reasons why the children of artisans and the younger generation craftsmen are turning away from these traditional crafts:
Lack of consistent demand
This industry, by its very nature, is fickle where the demand is concerned. The demand is predominantly seasonal with Christmas time bringing in almost unmanageable bulk orders while the period beyond that is almost dry. Young artisans find this massively fluctuating demand unnerving and feel that they cannot depend on this unpredictable industry for their livelihood.
Artisan at work
Absence of guaranteed earnings
Due to the fluctuating demand, it is very difficult for Indian artisans involved in traditional arts and crafts to earn a steady income all through the year. In comparison, a government job or employment in the organized sector ensures a guaranteed monthly salary. As artisan families are rarely affluent enough to get by without earnings from the sale of their handmade wares, the lure of an assured paycheck month on month is naturally enticing.
Lack of access to buyers
The Indian handicrafts market is highly disorganized. Only a handful of the more enterprising craftsmen have links with the right dealers and government showrooms. This allows them to reap the benefits of proper marketing and organized sales. For the others lost in the by-lanes of the massive country, reaching buyers is a tough task in itself. International tourists only visit known repositories of traditional wares like advertised showrooms and government sponsored exhibitions for their purchases. Craftsmen practicing their trades without such backing remain undiscovered.
Lack of regulation
In the absence of strong government regulation of the handicrafts market, traditional artisans get only a fraction of what their pieces actually sell for in the global markets. Although many efforts are on to bring these master craftspeople to the market directly, the changes have not permeated to all levels of this industry. Unless all craftsmen get fair pricing and have steady demand throughout the year, keeping the tradition alive is going to be a difficult task.
The waning interest among the next generation of craftsmen in taking up their ancestral trade is evident at shows and exhibitions. One can see that nearly all stalls at such events are manned by elderly artisans, well past the age of retirement in business parlance. The youngsters are not keen on working long, hard hours for meager and unpredictable earnings. There is no answer yet to the one question, that haunts the thoughts of these master craftsmen: “Who will keep my art alive after I am gone?”. It can only be hoped that some timely intervention will save the exquisite Indian crafts from waning away.
www.hastshilpisamachar.com
Monday, January 10, 2011
अटलांटा इंटरनेशनल गिफ्ट एंड होम फर्निशिंग14 से 18 जनवरी 2011
सांगानेर के शिल्पी का अमेरिका के अटलांटा में छपाई प्रदर्शन
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त ( हस्तशिल्प) द्वारा हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत सांगानेर के युवा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त सिध्हस्त शिल्पी बृज बल्लभ उदयवाल 14 से 18 जनवरी 2011 तक होने वाले आयोजन "अटलांटा इंटरनेशनल गिफ्ट एंड होम फर्निशिंग मार्केट" अटलांटा अमेरिका में सांगानेर कि विश्व प्रसिद्ध हाथ ठप्पा छपाई कला का जीवंत प्रदर्शन के लिये हुआ है. जिसके अंतर्गत प्राकृतिक एवं वानस्पतिक रंगों के प्रयोग को विभिन्न प्राकृतिक कपड़ो पर सांगानेरी रंगाई एवं छपाई के माध्यम से दुनिया भर के आये हुए आयातकों के सामने प्रस्तुत किया जायेगा. ज्ञात हो कि विगत कई दशकों से सांगानेर कि हाथ ठप्पा छपाई कला हजारों करोड़ विदेशी मुद्रा अर्जन करती रही है एवं अनुमानत प्रति वर्ष सांगानेर जयपुर से $ 200 करोड़ का व्यापार होता है जिससे लगभग 2000 परिवारों का रोजगार चलता है, आशा है कि यह प्रदर्शन निर्यात को और बढ़ावा देने में सहयोगी होने के साथ ही अधिक रोजगार उपलब्ध करने का उचित माध्यम साबित होगा.
सांगानेर, जयपुर
जयपुर शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित सांगानेर रंगाई-छपाई का एक विश्व प्रसिद्ध केन्द्र हैं।
शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्त्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहाँ बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है।
ब्लॉक प्रिंट से सांगानेर में कार्यरत 375 इकाइयाँ 2000 परिवारों को रोजगार प्रदान करती हैं.20,000 लोग इस शिल्प पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर है.
हाथ ब्लॉक छपाई भारत में सदियों पुरानी परंपरा है.लगभग 500 वर्ष पुराना है, हाथ ब्लॉक छपाई शिल्प एक विरासत के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है. हाथ ब्लॉक छपाई में सीमित उत्पादन और गहन मानव इनपुट है, सीमित पानी, प्राकृतिक रंजक के साथ बना, सांगानेरी हैण्ड ब्लॉक प्रिंटेड एक ब्रांड नाम हैं,यह पर्यावरण के अनुकूल है. परंपरागत शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता है
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त ( हस्तशिल्प) द्वारा हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन कार्यक्रम के अंतर्गत सांगानेर के युवा राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त सिध्हस्त शिल्पी बृज बल्लभ उदयवाल 14 से 18 जनवरी 2011 तक होने वाले आयोजन "अटलांटा इंटरनेशनल गिफ्ट एंड होम फर्निशिंग मार्केट" अटलांटा अमेरिका में सांगानेर कि विश्व प्रसिद्ध हाथ ठप्पा छपाई कला का जीवंत प्रदर्शन के लिये हुआ है. जिसके अंतर्गत प्राकृतिक एवं वानस्पतिक रंगों के प्रयोग को विभिन्न प्राकृतिक कपड़ो पर सांगानेरी रंगाई एवं छपाई के माध्यम से दुनिया भर के आये हुए आयातकों के सामने प्रस्तुत किया जायेगा. ज्ञात हो कि विगत कई दशकों से सांगानेर कि हाथ ठप्पा छपाई कला हजारों करोड़ विदेशी मुद्रा अर्जन करती रही है एवं अनुमानत प्रति वर्ष सांगानेर जयपुर से $ 200 करोड़ का व्यापार होता है जिससे लगभग 2000 परिवारों का रोजगार चलता है, आशा है कि यह प्रदर्शन निर्यात को और बढ़ावा देने में सहयोगी होने के साथ ही अधिक रोजगार उपलब्ध करने का उचित माध्यम साबित होगा.
सांगानेर, जयपुर
जयपुर शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित सांगानेर रंगाई-छपाई का एक विश्व प्रसिद्ध केन्द्र हैं।
शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्त्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहाँ बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है।
ब्लॉक प्रिंट से सांगानेर में कार्यरत 375 इकाइयाँ 2000 परिवारों को रोजगार प्रदान करती हैं.20,000 लोग इस शिल्प पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर है.
हाथ ब्लॉक छपाई भारत में सदियों पुरानी परंपरा है.लगभग 500 वर्ष पुराना है, हाथ ब्लॉक छपाई शिल्प एक विरासत के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है. हाथ ब्लॉक छपाई में सीमित उत्पादन और गहन मानव इनपुट है, सीमित पानी, प्राकृतिक रंजक के साथ बना, सांगानेरी हैण्ड ब्लॉक प्रिंटेड एक ब्रांड नाम हैं,यह पर्यावरण के अनुकूल है. परंपरागत शैली के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता है
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